Old poem that I wrote few years back.. Wanted to keep it in records. My favorite so far.
.
कल दिन गर्म था बहुत,
एक अरसे के बाद बक्से से तुम्हारा दुप्पट्टा निकाला,
उस पर सोंधी सी महक थी नारियल के तेल की,
बस, गर्मी में चेहरे पर लपेट कर ,
मोटरसाइकल चलाता रहा,
और नारियल के तेल की महक लेता रहा,
लगा, तुम पीछे ही बैठी हो,
मेरे कंधे पे सर रख कर,
और मैं गधा, तुम्हें यूँ ही झिड़क दिया करता था,
कि ये चिपके हुए बाल क्यूँ रखा करती हो,
माँ !
.
.
कल दिन गर्म था बहुत,
एक अरसे के बाद बक्से से तुम्हारा दुप्पट्टा निकाला,
उस पर सोंधी सी महक थी नारियल के तेल की,
बस, गर्मी में चेहरे पर लपेट कर ,
मोटरसाइकल चलाता रहा,
और नारियल के तेल की महक लेता रहा,
लगा, तुम पीछे ही बैठी हो,
मेरे कंधे पे सर रख कर,
और मैं गधा, तुम्हें यूँ ही झिड़क दिया करता था,
कि ये चिपके हुए बाल क्यूँ रखा करती हो,
माँ !
.