Thursday, February 4, 2016

Tera Khayaal..

तेरा ख़्याल,
जैसे शमाँ से खेलता पतंगा,
ना-वाक़िफ़े-अंज़ाम
फितरत में जल जाना है,
पर आना है,

फड़फड़ाते पंखो से,
कुरेदता है,
दिल का वो छोटा सा ज़ख्म ,
जो ज़माने से है,
पर भरने का नाम नही ले रहा,

मेरे आईने पे,
तेरी एक बिंदिया
जो सिर्फ,
सुर्ख दाग रह जाती है,
बनता नहीं उसके अतराफ़,
तेरा कोई अक़्स

मालूम हो गया है,
पंछियों को भी
तेरे आने जाने का वक़्त
न हो तेरी बातें
और न उनकी चहचाहट

जाने कब तक
न छँटेगा
इस फासले का कोहरा
कब ओस बन गिरेंगे
तेरे चंद अल्फ़ाज़

चले आओ फिर से,
दबे पाँव चलकर,
हटा दो धूल,
जो
जमी है किताबों पर,

इससे पहले कि
पीले हो जाएं पन्ने
और चली जाये
सौंधी सी
ताज़ा खुश्बू

गा लेने दो मुझे,
सारे वो नग्मे,
जो तुम्हारे लिए,
मैंने कभी
गाये नहीं

लिख लेने दो
वो सारे
मुहब्बत भरे खत
जो तुम्हे मैंने
कभी लिखे नहीं

करवटें बहुत हो गयी
वक़्त की,
ज़िन्दगी की
अब और नहीं,
इम्तेहान

कोरे पन्ने
बहुत ज्यादा हो गए हैं,
तुम्हारी मेरी इस किताब में,
आओ लिखें,
कुछ जुमले,
कुछ नग़मे प्यार भरे

खामोश आँखों में,
फिर ढूंढे एक दूजे के लफ्ज़,
इससे पहले की,
झड़ जाये प्यार का हर पत्ता,
सूख जाए ये दरख़्त

.
.

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